हमारे जीवन में सोच का प्रभाव एवं महत्‍व

Soch ka prabhav? हमारे जीवन में सोच का बहुत बड़ा प्रभाव हैं। क्योंकि हम जैसा सोचते हैं वैसा ही हमारे अंदर विचार भावना उत्पन्न होता है।

मनुष्य एक ऐसा प्राणी है जो जैसा सोचता है जिसके साथ रहता है जैसा उसका जीवनचर्या होता है उसी तरह उसका सोच भी हो जाता है।

मानव जीवन में सोच का बहुत बड़ा महत्व है। बचपन में जब कोई भी बच्चा अपने घर पर माता-पिता के साथ रह कर जो भी विचार गुण भावना बोलचाल की शैली देखता है, उसी तरह का उसका रहन-सहन बोलचाल बन जाता है।

इसीलिए हम जैसा सोचते हैं वैसा ही सोच हमारे साथ रहने वाले लोगों का भी धीरे-धीरे होने लगता है। क्योंकि कहा जाता है कि जिस तरह के लोगों के साथ हमारा रहन-सहन होता है उठना बैठना होता है उसका प्रभाव हमारे ऊपर भी पड़ता है।

हम अपने जीवन में जो भी बातें या विचार सीखते हैं, वह सब कुछ हमारे समाज संस्कृति घर और स्कूल में देखने या सुनने समझने को मिलता है। हमारे सिद्धांत, संस्कृति, विचार, भावना से हमारे आने वाली पीढ़ी को भी वैसा ही संस्कृति संस्कार विचार इत्यादि का ज्ञान प्राप्त हो जाता है।

इस लेख में हम लोग सोच का सकारात्मक प्रभाव एवं नकारात्मक प्रभाव के बारे में पूरी जानकारी प्राप्त करेंगे। जिसमें हम लोग यह भी बात करेंगे की सोच से हमारे जीवन में कितना बदलाव हो सकता है। हमारे सोच का प्रभाव हमारे जीवन पर कैसे पड़ता है।

हम अपने जीवन में कैसे समस्याओं या उसके निराकरण की तरफ अग्रसर हो सकते हैं इन सभी चीजों के बारे में लोग पूरी जानकारी नीचे विस्तार से प्राप्त करेंगे।

सोच का प्रभाव

मानव शरीर का दिमाग पूरी तरह से खाली होता है। जब कोई बच्चा जन्म लेता है, उस समय उसका दिमाग पूरी तरह से खाली होता है। जैसे जैसे वह बड़ा होता है वैसे वैसे उसके दिमाग के अंदर उसके माता-पिता एवं उसके साथ रहने वाले लोगों का प्रभाव उसके दिमाग पर पड़ता है।

जैसा आचरण, बोलचाल, रहन-सहन उसके माता-पिता या उसके साथ रहने वाले लोगों का होता है।ठीक वैसा ही जो बच्चा परिवार में रहने वाला होता है, वह भी वैसा ही सब कुछ सीखता है, जैसा उसके घर में होता है। क्योंकि जो बच्चा घर में रह रहा है वह सब कुछ घर के अंदर जो हो रहा है जो बातें उसको सुनाई दे रहा है जैसे लोग कपड़ा खाना पीना या हर जो भी एक कर्म करते हैं वैसा बच्चा निरंतर देखें रहता है।

Soch ka prabhav

जिससे उसी तरह का आचरण सीख लेता है। इसीलिए तो कहा जाता है कि जैसा हमारा आचरण होगा वैसा ही हमारे बच्चों का भी आचरण होगा। एक बच्चा हो या एक बड़ा आदमी हो दोनों हर समय अपने जीवन में कुछ नया सीखते रहता है। जीवन में हम हर पल कुछ नया सीखते हैं।

चाहे हम बड़े हैं बच्चे हैं बुजुर्ग हैं कोई भी हो उनको जब तक जीना है, तब तक नया कुछ न कुछ सीखना है। अब जो चीजें हम सीखते हैं, हो सकता है कि वह सही हो या वह गलत भी हो सकता है। यह प्रभाव हमारे साथ रहने वाले लोगों के साथ जुड़ा हुआ है।

क्योंकि हम जिसको बड़ा मानते हैं या जिससे हम ज्ञान प्राप्त करते हैं, जो हमारे मार्गदर्शक हैं, जैसे किसी बच्चे का माता-पिता, भाई-बहन, बाबा, दादी, स्कूल में पढ़ाने वाले शिक्षक या फिर दोस्त मित्र यह जितने भी सगे संबंधी हैं, इन सभी से जितना अधिक से अधिक वार्ता होता है उनके साथ जितना अधिक समय हम व्यतीत करते हैं वैसा गुण हमारे अंदर भी आता है। हम भी ऐसे ही भावनाओं को लोगों के सामने प्रदर्शित करते हैं।

मनुष्य जीवन में हम पृथ्वी पर ही गलत या सही सभी चीजों को सीखते हैं। इसीलिए कहा गया है कि संगत से गुण होत है संगत से गुण जात। यदि हमारे संगत अच्छे लोगों के साथ है, तो हम अच्छे विचार, अच्छे ज्ञान, अच्छे रहन-सहन के जो भी तौर तरीके हैं उसको सीखते हैं।

यदि हमारा संगत गलत लोगों के साथ है तो फिर हमारा बुद्धि ज्ञान भी उसी तरह का बन जाता है। जैसे जो गलत लोग हैं और जो गलत काम करते हैं, वैसे ही हमारा भी आहार व्यवहार रहन-सहन सब कुछ बन जाता है।

सोच का प्रभाव एक उदाहरण

एक कहावत है खाली दिमाग शैतान का घर होता है। यदि हमारा दिमाग बिल्कुल खाली है तब हमारे दिमाग में नाना प्रकार के विचार मन में आते हैं। इसीलिए कहा जाता है कि अपने दिमाग को खाली नहीं रखना चाहिए। मनुष्य जीवन में हर समय कुछ काम करते रहना चाहिए। जिससे हमें खाली सोचने की प्रवृत्ति से मुक्ति मिल सकती है।

जैसा कि हमने बताया कि सोच का बहुत बड़ा महत्व है। जब आदमी खाली रहता है उसके पास कुछ भी काम नहीं होता है। तब वह गलत प्रकार के कई तरह के नाकारात्मक चीजों के बारे में सोचता है। हो सकता है कि वह कुछ सकारात्मक चीजों के बारे में भी सोच सकता है।

लेकिन जब आदमी खाली होता है, तो अधिकतर उसका सोच नकारात्मक हो जाता है। क्योंकि उसके पास कोई काम नहीं होता है और इस स्थिति में वह सभी चीजों को नकारात्मक दृष्टि से सोचता है और वैसा ही कार्य करने का भी सोच उत्पन्न होता है।

एक रोगी व्यक्ति है और उसी के साथ एक स्वस्थ व्यक्ति भी हर समय रहता है। अब जो रोगी व्यक्ति है वह यदि बार-बार रोग के बारे में ही बात करता है तो स्वस्थ व्यक्ति भी उसके रोग का शिकार बन सकता है। क्योंकि उसको हर समय उस रोगी व्यक्ति के साथ रहना पड़ता है। वह रोगी व्यक्ति बार-बार रोग का ही बात करता है। रोगी होना कोई गलत बात नहीं है, कोई भी हो सकता है।

क्योंकि शरीर में अलग-अलग तरह के बदलाव को हम मनुष्य रोक नहीं सकते हैं। एक स्वस्थ व्यक्ति भी रोगी हो सकता है। लेकिन रोगी होकर केवल उसी में डूबे रहना सबसे बड़ा खतरनाक है। क्‍योंकि केवल आप उसी चीज के बारे में सोचते हैं। वैसा ही आप लोगों को बताते हैं। वैसा ही बात करते रहते हैं तो आपका रोग और भी बड़ा हो सकता है। इसीलिए रोग हो जाने के बाद भी हमें सकारात्मक सोच के साथ आगे बढ़ना चाहिए तब हम बहुत जल्द स्वस्थ हो सकते हैं।

जीवन में अगर हम बार-बार केवल रोग के बारे में सोचते हैं, तो हम रोगी जरूर हो सकते हैं। यदि हम स्वस्थ रहने के बारे में सोचते हैं तो हम स्वस्थ हो सकते हैं। एक ही बात का जो लोग रट लगाते हैं और एक ही चीज के बारे में हर समय सोचते रहते हैं, उसे ही तो मनोरोगी कहते हैं। मन का रोग सबसे बड़ा रोग है। 

राेग का शुरुआत हमारे मस्तिक से होता है। मस्तिक ही हमारे रोग और रोग से मुक्ति का कारण है। मनुष्य का मस्तिष्क एक ऐसा चीज है जिससे पूरे शरीर का संचालन होता है। हमारे शरीर के अंदर सकारात्मक और नकारात्मक ऊर्जा का संचार भी हमारे मस्तिष्क से होता है। इसीलिए मस्तिष्क को सदैव सकारात्मक बनाना चाहिए।

एक और उदाहरण 

बच्चा बचपन से अपने माता-पिता के साथ रहता हैं और बचपन में ही उसके माता-पिता अलग-अलग प्रकार के रोग से भयभीत रहते हैं। अब बच्चा बचपन से ही अपने माता-पिता के भयभीत होने का जो तौर तरीका हैं उसको सीखता हैं।

धीरे-धीरे जब बच्चा बड़ा होता हैं तो वह भी उसी तरह का हरकत करने लगता हैं। अपने जीवन में हर समय भयभीत रहने लगता हैं। उस बच्चे को ऐसा महसूस होता हैं कि हम कभी भी बीमार हो सकते हैं। हमारे अंदर इस तरह का बीमारी हो सकता है। भ्रमित रहने वाला उसका विचार ही जाता हैं। 

कुछ ऐसे लोग होते हैं जो हर समय भ्रमित रहते हैं। उनको ऐसा लगता है कि हम बीमार हैं हमारे साथ कुछ गलत हो सकता है। ऐसा सोचने वाले लोग दूसरे लोगों को भी भ्रमित कर देते हैं। इसलिए ऐसे लोगों के साथ रहना उठना बैठना और बातें करना हमारे जीवन पर भी बुरा प्रभाव डाल सकता है।

इसीलिए हमारे जीवन में ऐसे लोगों के साथ उठना बैठना और रहना चाहिए जो लोग सकारात्मक ऊर्जा से बिल्कुल भरे हुए हैं। सकारात्मक ऊर्जा हमारे जीवन के लिए बहुत ही जरूरी है। क्योंकि इससे हमारा जीवन धरती पर स्वर्ग बन जाता है। हम लोग कल्पना करते हैं कि स्वर्ग कैसा हो सकता है। स्वर्ग धरती पर भी स्थित है बस हमें महसूस करने की आवश्यकता है। 

स्वर की खोज हम कहीं दूसरे जगह करने के अलावा अपने मन, विचार, शरीर, वाणी, मस्तिष्क को ही इस धरती पर स्वर्ग बना सकते हैं।

यह हमारे अंदर हमारे विचार से ही बन सकता है। हमारा मन ही स्वर्ग है जैसा हमारा मन होगा वैसा ही हमारी बुद्धि विचार ज्ञान रहन-सहन भी हो जाएगा। यदि हम अपने मस्तिष्क के अंदर अपने स्वर्ग वाले विचार को लाते हैं, तो हमारा जीवन धरती पर ही स्वर्ग बन जाता है।

बचपन से ही रोगों से पीड़ित व्यक्ति अपने पूरे जीवन में केवल रोग का ही एकमात्र चर्चा करता है। क्योंकि उसके पास दूसरा कोई भी विचार नहीं है न उसके पास दूसरी चीजों के बारे में सोचने की क्षमता है। वह एकमात्र जीवन में नकारात्मक सोच के साथ ही जन्म लेता है। और नकारात्मक सोच के साथ ही उसका जीवन लीला भी समाप्त हो जाता है। 

क्योंकि उसके जन्म समय से ही उसके माता पिता उसके साथ रहने वाले लोग उसके सकारात्मक विचारों को खत्म कर चुके हैं। उसके अंदर केवल नकारात्मक चीजों को ही भर कर रख दिया है। वैसे लोगों को यदि जीवन में कोई भी व्यक्ति सकारात्मक चीजों के बारे में बताता है तो भी वह समझते नहीं है।

क्योंकि उनके अंदर नकारात्मक ऊर्जा का ऐसा भंडार भरा हुआ है जिसको समाप्त करना आसान नहीं है। इसीलिए सोच हमारे जीवन में बहुत बड़ा भूमिका निभाता है।

सोच का सकारात्मक प्रभाव

जीवन में मन का मजबूती सबसे बड़ा मजबूती है। एक मजबूत मन ही करोड़ों समस्याओं का सामना कर सकता है। शरीर का शक्ति और मजबूती तो एक मात्र शरीर का ही दिखावटी और उसके बनावट के रूप में मौजूद होता है। जिसका उपयोग हम लोग अलग-अलग कामों के लिए करते हैं।

लेकिन जब हमारा मन मजबूत होता है, तो हम अपने उस मजबूत मन से जीवन के हर समस्याओं का सामना सही तरीके से कर सकते हैं। हमारा मन ही दुख और सुख का कारक है। मन हमारा स्वस्थ है तो हम स्वस्थ हैं और मन हमारा अस्वस्थ है तो हम अस्वस्थ हैं। 

मन को स्वस्थ करने का एकमात्र उपाय अपने आसपास के वातावरण मैं वैसे लोगों के साथ हम अपने दिनचर्या को बनाएं जिसका मन स्वस्थ हो जो सकारात्मक ऊर्जा से भरा हुआ हो। जीवन में सकारात्मक ऊर्जा हमारे शरीर मन बुद्धि ज्ञान को तेज गति से आगे बढ़ाता है। इसीलिए हमें वैसे लोगों के साथ मित्रता या रहन-सहन उठना बैठना बनाना चाहिए जो सकारात्मक सोच रखते हैं।

हम अपने जीवन में कभी न कभी ऐसा जरूर महसूस करते होंगे कि सकारात्मक सोच वाले व्यक्ति का मन बुद्धि मस्तिष्क और शरीर का संपूर्ण अवस्था देखकर ही पता चलता है कि उस व्यक्ति का सोच बहुत ही सकारात्मक ऊर्जा से भरा हुआ है। 

चाहे शिक्षा का क्षेत्र हो घर हो परिवार हो या अन्य कोई भी स्थान हो, जहां पर हम जिस लोगों के साथ अपने समय को साझा करते हैं वैसे स्थान पर हमें अच्छे लोगों के साथ मिलना जुलना चाहिए। सकारात्मक सोच बनाने के लिए हम अपने जीवन में आराधना ध्यान तपस्या व्‍यायाम इत्यादि करके अपने जीवन को सकारात्मक सोच की ओर अग्रसर कर सकते हैं।

नकारात्मक सोच का प्रभाव

नकारात्मक सोचने वाले व्यक्ति अपने जीवन में सफलता बहुत ही कम प्राप्त करते हैं। वैसे लोग अपने जीवन में अन्य समस्याओं से भ्रमित रहते हैं। उनको अपने जीवन में क्या करना चाहिए और क्या नहीं करना चाहिए इन सभी चीजों से कोई मतलब नहीं होता है।

केवल एक मात्र नकारात्मक चीजों में ही अपने दिमाग को लगाए रहते हैं। उनका मन कभी भी स्थिर नहीं होता भ्रमित रहता है। नकारात्मक कई प्रकार के ऊर्जा उनके शरीर के अंदर हर समय प्रवेश करते रहता है। क्योंकि एक नकारात्मक मन आदमी के नकारात्मक दिनचर्या का महत्वपूर्ण हिस्सा बन जाता है। 

क्योंकि उनका जीवन सुबह जगने से लेकर रात सोने तक केवल अलग-अलग प्रकार के नकारात्मक विचारों से भरा हुआ रहता है। केवल उनका ही विचार नकारात्मक नहीं होता है बल्कि उनके साथ रहने वाले बैठने वाले लोग जो होते हैं, वह भी यदि उनके साथ उठन बैठन रहन-सहन रखते हैं तो उनका भी सोच साकारात्मक बन जाता है।

क्योंकि एक सड़ा हुआ आलू पूरे आलू को खराब कर सकता है। इसीलिए उसको निकाल करके फेंक दिया जाता है। इसीलिए हमें अपने जीवन में वैसे लोगों के साथ नहीं रहना चाहिए जो केवल नकारात्मक विचारों से भरे हुए हैं। 

जिनके साथ रहने से हमारे जीवन में भी नकारात्मक विचार आने की संभावना बढ़ जाती है। चाहे आप कितना भी मजबूत सकारात्मक सोच वाले व्यक्ति हो। लेकिन आप का रहन-सहन हर समय नकारात्मक सोच वाले अधिक संख्या में लोगों के साथ होता है, तो आपका भी विचार सकारात्मक से नकारात्मक में बदल सकता है।

इसीलिए हमें अपने जीवन में जो भी नकारात्मक विचार वाले व्यक्ति हैं, उनसे अलग जीवन जीने का प्रयास करना चाहिए। अधिक से अधिक वैसे लोगों के साथ अपना समय, बातचीत, विचार, रहन-सहन बनाना चाहिए जो सकारात्मक सोच के साथ जीवन में आगे बढ़ रहे हैं।

सारांश

हमारे जीवन में सोच का प्रभाव के बारे में इस लेख में हमने जानकारी दिया है। जिसमें सकारात्मक सोच और नकारात्मक सोच से हमारे जीवन में किस तरह का बदलाव हो सकता है, उसके बारे में हमने जानकारी देने का प्रयास किया है। फिर भी यदि आपको लगता है कि इस लेख से संबंधित कोई भी सवाल या सुझाव आपके मन में है, तो आप जरूर हमारे कमेंट बॉक्स में टाइप करके पूछें। हम उसका जवाब देने का आपको जरूर प्रयास करेंगे। 

Gyanitechraviji.com वेबसाइट पर हम सदैव सकारात्मक सोच के साथ लोगों को आगे बढ़ने की प्रेरणा देते हैं। इस वेबसाइट पर हम कंप्यूटर, टेक्नोलॉजी, इंटरनेट के इस नए युग में आप सभी को टेक्निकल चीजों के साथ मजबूत बनाने का हम निरंतर प्रयास करते हैं। आइए हमारे साथ जुड़िए और डिजिटल इंडिया बनाने में एक कदम और आगे बढ़ने का प्रयास करें।

Leave a Comment